संस्थापक इंद्रेश वर्मा का सन्देश |
|
अमर् आत्मन् प्रिय बहनों तथा भाइयों
शिक्षा केवल बी.ए., एम.ए. की डिग्री प्राप्त करने का ही नाम नहीं है। शिक्षा का अर्थ है (सीखने की इच्छा) यह अर्थ साहित्यिक नहीं केवल मेरे मानसिक पटल की खोज है। शिक्षा के नाम पर सरकार ने तथा समाज के कुछ उदार महान लोगों ने अपना धन व समय दान दिया हैं परन्तु शिक्षा के स्तर में सुधार के स्थान पर गिरावट ही दर्ज हुई है इसका एक ही कारण है कि आज के परिवेश में गुरू शिष्य की पुराने समय की गुरूकुल परम्परा का समाप्त हो जाना है जहाँ पर एक दूसरे के प्रति सम्मान था गुरू को आशीर्वादात्मक शक्ति प्राप्त थी किन्ही-किन्ही परिस्थितियों में शिष्य गुरू से विद्वता में आगे निकल जाया करते थे। इसका एक आदर्श उदाहरण है श्री स्वामी विवेकानन्दजी एवं डाॅ0 सर्वपल्ली राधाकृष्णनन जी। समय परिवर्तन के साथ शिष्य का स्थान लड़के तथा गुरूजी के स्थान पर मास्टर साहब ने ले लिया है। उदाहरण के लिये तबला मास्टर, हरमोनियम मास्टर, ढोलक मास्टर कहने का अर्थ है भांड़ संस्कृति पनप चुकी है जहाँ पर कोई किसी के प्रति सम्मान का भाव नहीं रखता है। हमारी शिक्षा के इस गिरे हुए स्तर ने हमारे जनमानस को इतना बिगाड़ दिया है कि हम अपनी भारतीय संस्कृति को पूर्णतया भूल कर पाश्चात्य संस्कृति को अपनाने के लिये अग्रसर हो रहें हैं जिससे यूज एण्ड थ्रो की शिक्षा मिलती है। जहाँ पर व्यक्ति जिस महिला के गर्भ से पैदा होता है उसी को ही माँ मानता है इसके अतिरिक्त विश्व की सभी महिलाओं में वह पत्नीत्व के दर्शन करता है इसके विपरीत भारतीय संस्कृृति हमें यूज एण्ड कीप की शिक्षा देती है। जिसके अनुसार भारतीय व्यक्ति जिस महिला से शादी करता है उसी को ही पत्नी मानता है। शेष विश्व की सभी महिलाओं में मातृत्व के दर्शन करता है। ऐसी हमारी पुरातन शिक्षा व्यवस्था थी जिससे एक महान भारतीय संस्कृति का निर्माण होता था जिसकी ताकत के आधार पर हमारे देश भारत को विश्व भर में धर्म गुरू बनने का सम्मान प्राप्त था परन्तु अब क्या होगया है यह सोंच कर मुझे बड़ी ग्लानि होती है।
हमारे विद्यार्थियों में पढ़ने की इच्छा में कमी आयी है उनमें नैतिकता का हृास हुआ है वह कुछ मेहनत न करके डिग्री पाना चाहते हैं। सरकारी नौकरी करना चाहते हैं नौकरी पाने के लिए, सुविधा शुल्क देने के लिए पिता पर दबाव बनाते हैं फिर भी यदि नौकरी न मिली तो पिता को यह कहकर दोषी ठहराते है कि आपने पर्याप्त पैसे की व्यवस्था नहीं की वरना नौकरी मिल जाती यही है आपकी नैतिकता। आप अपनी काबिलियत, योग्यता के बल पर नौकरी प्राप्त करें तब तो ठीक है। आप नकल करके पास होना चाहते हैं। नकल करना एक मीठा जहर है, जो आपकी याद्दाशत को खा रहा है, आप किसी कम्पटीशन के लायक नहीं रहेंगे। फिर कहेंगे पढ़ना लिखना सब बेकार है।
पुड़िया खा रहे हैं, आप नहीं समझते हैं कि पुड़िया आपको खा रही है। यूँ ही हमेशा ऐसे ही आप जवान नंही रहेंगे, आपने अपने बड़ो पर नजर डालकर क्या विचार किया है कि कभी इस उमर से आपको भी गुजरना पड़ेगा, आप के बड़े लोग इस उमर में तो अच्छे दिखते भी हैं परन्तु आप पुड़िया, सिगरेट, गांजा आदि का सेवन करते हैं आपके मुँह से गन्दी नाली जैसा कचरा निकलता है। आपको कैंसर हो सकता है। दाँत गन्दे होकर गिर जायेगें, उम्र से पहले बूढ़े हो जायेगे आपकी ही पत्नी व बच्चे आपको छूना तो दूर देखना तक पसन्द नहीं करेंगे। विचार कीजिये क्या यह कटु सत्य नहीं है। पुड़िया, सिगरेट, शराब पीना आप बन्द कर दें और अपने मित्र साथियों को भी यह संदेश दें कि वह भी इन चीजों का सेवन न करें जो उनके भविष्य के लिये अति सुन्दर रहेगा।
|